The smart Trick of Shodashi That Nobody is Discussing

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There are actually many advantages of chanting the Shodashi Mantra, outside of which the most important ones are described below:

The Mahavidya Shodashi Mantra supports psychological stability, promoting therapeutic from previous traumas and inner peace. By chanting this mantra, devotees discover launch from damaging thoughts, producing a well balanced and resilient attitude that can help them confront existence’s difficulties gracefully.

The reverence for Goddess Tripura Sundari is apparent in just how her mythology intertwines While using the spiritual and social cloth, giving profound insights into the nature of existence and The trail to enlightenment.

यहां पढ़ें त्रिपुरसुन्दरी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र संस्कृत में – tripura sundari ashtottarshatnam

From the spiritual journey of Hinduism, Goddess Shodashi is revered as a pivotal deity in guiding devotees in direction of Moksha, the final word liberation in the cycle of birth and Loss of life.

ह्रीं श्रीं क्लीं त्रिपुरामदने सर्वशुभं साधय स्वाहा॥

षोडशी महाविद्या प्रत्येक प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं। मुख्यतः सुंदरता तथा यौवन से घनिष्ठ सम्बन्ध होने के परिणामस्वरूप मोहित कार्य और यौवन स्थाई रखने हेतु इनकी साधना अति उत्तम मानी जाती हैं। त्रिपुर सुंदरी महाविद्या संपत्ति, समृद्धि दात्री, “श्री शक्ति” के नाम से भी जानी जाती है। इन्हीं देवी की आराधना कर कमला नाम से विख्यात दसवीं महाविद्या धन, सुख तथा समृद्धि की देवी महालक्ष्मी है। षोडशी देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध अलौकिक शक्तियों से हैं जोकि समस्त प्रकार की दिव्य, अलौकिक तंत्र तथा मंत्र शक्तियों की देवी अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। तंत्रो में उल्लेखित मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, स्तम्भन इत्यादि जादुई शक्ति षोडशी देवी की कृपा के बिना पूर्ण नहीं होती हैं।- षोडशी महाविद्या

She is the possessor of all wonderful and fantastic points, including Bodily goods, for she teaches us to have with no being possessed. It is claimed that stunning jewels lie at her toes which fell within the crowns of Brahma and Vishnu after they bow in reverence to her.

कामाकर्षिणी कादिभिः स्वर-दले गुप्ताभिधाभिः सदा ।

॥ अथ श्रीत्रिपुरसुन्दरीचक्रराज स्तोत्रं ॥

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥५॥

केयं कस्मात्क्व केनेति सरूपारूपभावनाम् ॥९॥

भर्त्री स्वानुप्रवेशाद्वियदनिलमुखैः पञ्चभूतैः स्वसृष्टैः ।

बिभ्राणा वृन्दमम्बा more info विशदयतु मतिं मामकीनां महेशी ॥१२॥

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